शेफ ने बताया, देव आनंद को ‘मां की दाल और छोले’ बेहद पसंद थे
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मुंबई के आईटीसी होटल में शेफ रही गुंजन गोएला ने बताया कि जब देव साहब ने एक साथ रात्रिभोज के लिए मेरा निमंत्रण स्वीकार किया तो खुशी और अविश्वास दोनों भावनाएं मेरे अंदर उमड़ आईं। जब मैंने मुंबई के आईटीसी होटल से मास्टर शेफ के तौर पर देव आनंद को फोन किया, तो उन्होंने खुद फोन का जवाब दिया। उन्हाेंने भावपूर्ण तरीके से कहा, “देव बोल रहा हूं”। यह बात अभी भी मेरे कानों में गूंजती है। जब मैंंने पहली बार उनके हाथ मिलाया तो मेरे हाथ कांप रहे थे।
उन्होंने कहा कि आप मेरी भावनाओं के उस सैलाब की कल्पना कीजिए जब देव आनंद ने रात्रिभोज का मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया था। मुझे याद नहीं है कि मैंने कितनी बार अपने आप को आश्वस्त करने के लिए खुद को चुटकी काटी थी। हमने उनकी खान-पान की आदतों के बारे में बात की ताकि मैं उनके दिल के मुताबिक एक मेनू तैयार कर सकूं। उन्होंने कहा, ”मैं पंजाबी हूं, इसलिए मां के दाल छोले पसंद है। यह बात दर्शाती है कि उन्हें एक “पंजाबी” होने पर कितना गर्व महसूस होता था।
मुझे आश्चर्य हुआ कि उनका सदाबहार लुक देसी घी में बनने वाले परांठे और उनकी लस्सी जिसमें मक्खन की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए, से कैसे अछूता रहा। वह बड़े चाव से याद कर रहे थे कि कैसे उनकी मां अक्सर रसोई में उसके लिए खाना बनाती और परोसती थी, और उसे अपने सामने लकड़ी के एक तख्ते पर बैठाती थी। उन्होंने बताया कि उनके चेहरे की सुनहरी चमक उनके बचपन की खाने से जुड़ी यादों को दिखा रही थी। पंजाबी भोजन के प्रति उनका प्रेम लंदन की उनकी यात्राओं के दौरान भी दिखा। उन्होंने पूर्ण देसी भोजन का आनंद लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा। क्या उन्हें विभिन्न प्रकार के समुद्री भोजन, यूरोपीय मेनू द्वारा पेश की जाने वाली स्वादिष्ट मिठाइयों ने लुभाया नहीं था?
अपनी प्रसिद्ध निश्छल मुस्कान के साथ उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें ठंडे कोला की तुलना में गर्म चॉकलेट पसंद है। उन्होंने जीवन में अंतिम 10 वर्षों में मांसाहार के बजाय शाकाहारी व्यंजन पसंद किए। उन्होंने कहा कि मैंने देव साहब से पूछा कि वह हमेशा अपने स्कार्फ को इतने स्टाइलिश ढंग से कैसे पहन पाते हैं। उन्होंने अपनी विशिष्ट तरंग के साथ उत्तर दिया, “अपने आप में आत्मविश्वास रखें, और उन तत्वों से दूर रहें जो आपको नीचे धकेलते हैं या नकारात्मक भावनाएं देते हैं।”
मुझे याद है कि जब हम भोजन कर रहे थे तो रेस्तरां मैनेजर उन्हें शुभकामना देने आया था। उनके जाते ही देव साहब ने मुझसे उनके बारे में ऐसे बात की जैसे वे उन्हें बहुत पहले से जानते हों। उस दोपहर को याद करते हुए, मैं कह सकती हूं कि उन्होंने जीवन के साथ उसी तरह रोमांस किया जैसे उन्होंने अपने भोजन का स्वाद लिया था। उन्हें खट्टा भोजन खाने में आनंद आता था, लेकिन वे इसको लेकर बेहद सचेत थे ताकि वे अपने गले की रक्षा कर सकें।
(आईएएनएस)
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