इस व्रत से मिलता है सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल, जानें पूजा विधि
डिजिटल डेस्क, भोपाल। देवी की उपासना के सबसे बड़े पर्व नवरात्रि के समापन के बाद दशहरा भी निकल चुका है। अक्टूबर माह भी समापन की ओर है, लेकिन इससे पहले इस माह में आने वाली एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। यहां हम बात कर रहे हैं पापांकुशा एकादशी व्रत की, हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह एकादशी 25 अक्टूबर बुधवार यानि कि आज है।
मान्यता है कि महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापांकुशा एकादशी का महत्व बताते हुए कहा था कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है। इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति इस लोक के सुखों को भोगते हुए मोक्ष को प्राप्त करता है। आइए जानते हैं पापांकुशा एकादशी व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि…
शुभ मुहूर्त
तिथि आरंभ: 24 अक्टूबर दोपहर 3 बजकर 14 मिनट से
तिथि समाप्त: 25 अक्टूबर दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक
सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल
ऐसा कहा जाता है कि, एकादशी की रात में जागरण करने और हरि चिंतन, भजन करने वाला जातक अपने सहित कई पीढ़ियों का उद्धार कर देता है। इस एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा करते समय धूप, दीप,नारियल और पुष्प का उपयोग किया जाता है और भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। पाकुंशा एकादशी एक हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल देने वाली एकादशी होती है। जो भी जातक इस एकादशी की रात्रि में भगवान श्री विष्णु के मंत्रों का जाप करता है उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
ऐसे करें पूजा
– इस दिन प्रातः काल या सायं काल श्री हरि के पद्मनाभ स्वरुप का पूजा करें।
– मस्तक पर सफेद चन्दन या गोपी चन्दन लगाकर पूजा करें।
– भगवान को पंचामृत, पुष्प और ऋतु फल अर्पित करें, एक वेला पर पूर्ण सात्विक आहार ग्रहण करें।
– शाम को आहार ग्रहण करने के पहले उपासना, सेवा और आरती अवश्य करें।
– इस दिन ऋतुफल और अन्न का दान करना विशेष शुभकारी होता है।
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